मन मन्मथ
जलने और
जलाने वाला
मिल बन जाए जल
ठहरे हुए
हृदय से पूँछो
यह क्या रहा उछल ?
चुपके -चुपके
जमी फफूँदी
ठहरा रहा अचार
वाद-वाद में आँखें मूँदे
लड़ता रहा विचार
जाने कौन
हृदय निष्ठुर था
या अधरों का छल !
हम दोनों के
नेह-बूँद पर
बीत गये कुछ वर्ष
कब आया था दुःख का अंधड़
कब आया था हर्ष ?
सूने-सूने से
आँगन में
तकती चहल-पहल।
तुम गहरे थे
या बहरे थे
या अपश्रव्य मना ?
मन मन्मथ का मथ-मथ हमने
मंथन किया घना
सीपों के
कीड़े का करतब
मोती रहे निकल…