मन-मंदिर में यादों के नित, दीप जलाया करता हूँ ।
मन-मंदिर में यादों के नित, दीप जलाया करता हूँ ।
होकर बेखुद आँखों को मैं, चाँद दिखाया करता हूँ ।
बरसेगी वो खुशबू बनकर, इक दिन इस वीराने में-
साँझ-सवेरे दिल को अपने, यही बताया करता हूँ ।
अशोक दीप
जयपुर