मन मंदिर के कोने से
मन मंदिर के कोने से
झांक रहा अर्ध चेतनमन
धन दौलत अमूल्य अपार
प्रसाद उठा ले जाऊं या
खाली हाथ लौट जाऊं
पर बिन श्रम पूजा कैसे
भर हाथ उठा ले जाऊं
कौन देख रहा यहां पे
पत्थर मूरत क्या जाने
जग में लेना देना क्या
मन जो चाहे वही करो
जग से क्या लेना देना
अचेतन मन यही कहता
पर सोच है निज अपनी
चेतनमन हर पल कहता
कोई श्रम नहीं मेरा इसमें
इसलिए मेरा अधिकार नही
कर्महीनता फिर कहता
उठा जल्दी चल दे यहां से
क्या जाने तूने क्या किया
कलयुग तेजाजी महाराज
कहते दूसरो से छीना झपटी
ये है निज मेरा अधिकार
श्रम विहीन फल पा लेना
किसी को जरूर यह भाता
बिन परिश्रम सब क्षण में
मिल जाए मारा मारी युग में
कौन ऐसा मौका जाने देता
चंचल मन यह कहता है
मुंह औरों से छीन आहार
अपना पेट भर लेना है
चेतन मन हमेशा कहता
अपना हक ले औरों को
हक देना कितना अच्छा
सात्त्विक मन सुविचारों
का रखवाला कपटी मन
कुविचारों का जग बसेरा
विचार प्रभाव योग से ही
जीवों की कहानी बनती
जग पथ प्रदर्शक होती
नकारात्मकता अर्धचेतन मन
सकारात्मकता चेतनमन का
जड़ पादप पल्लव है जो
कर्म अकर्म से पहचान बनाता
सत्कर्म खुशी मदद प्रेम प्यार
सहानुभूति योगों से मानसिक
शांति से चेतन मन बनाकर
अर्धचेतन को काबू कर पाता
जग अभिमान बढ़ाता है॥
तारकेशवर प्रसाद तरूण