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23 Sep 2023 · 1 min read

मन तो बावरा है

मन तो बावरा है
अटकता है कभी तो
भटकता है कभी..
विरक्त है कभी तो
आसक्त है कभी…
धूप है प्रेम की
तो छाह यादों की कभी!!

डूबता उतरता सा
मचलता, भटकता सा कभी,
कितने रंग समेटे खुद में
हो रहा बदरंग कभी

रे मन..
कैसे पाऊँ थाह तेरी
है तू आस कभी तो
तू है निर्लिप्त कभी

हिमांशु Kulshreshtha

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