मन को सुख से भरता देश
मन को सुख से भरता देश ।
कहीं सघन वन- उपवन-बाग,
कहीं नदी, सर, ताल, तड़ाग,
हिमगिरि कहीं, कहीं पर रेत,
कहीं मनोहर धानी खेत ,
कितना मनभावन परिवेश ।
मन को सुख से भरता देश ।।
कहीं मधुर कलरव का शोर,
कहीं नाचते सुन्दर मोर,
तोता-मैना कहीं बटेर,
कहीं दहाड़ लगाते शेर,
सुन्दर खग,मृग बड़े विशेष ।
मन को सुख से भरता देश ।।
प्रकृति बदलती रहती रूप,
बादल कहीं, कहीं पर धूप,
सर्दी, गर्मी, रिमझिम मेह,
सब सहती धरती की देह,
मिलता दृढ़ता का संदेश ।
मन को सुख से भरता देश ।।
सबके अपने अपने ठाठ,
सबके अपने पूजा- पाठ,
फिर भी रहते सब मिल साथ,
बढ़ते सदा मदद को हाथ,
भले अलग हों सबके भेष ।
मन को सुख से भरता देश ।।
– त्रिलोक सिंह ठकुरेला