मन के सवालों का जवाब नाही
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” मन के सवाल का जवाब नहीं
विचारशील मै बैठकर कागज कलम की
तन्हाई पर कुछ सवाल उभरे हैं।
एकान्त की पराकाष्ठा पर
इस मन की गहराई के सवाल का जवाब नही
खामोश मन पर आगोश रख
आक्रोश की गोद में बवाल निखरा है
एकान्त की पराकास्था पर
इस मन की गहराई के सवाल का जवाब नहीं ||
चिन्तन मनन से सनन में बैठकर
नशे में चूर तन्हाई पर जबान निखरी है।
फिर भी एकान्त की पूराकाष्ठा पर
इस मन की गहराई के.सवाल का जवाब नहीं ।।
बीच राह में इन नजरो से टकराकर
वो स्वप्न सुन्दरी करीब आकर निकली है।
हडबडी की पराकाष्ठा पर
इस मन की शहजादी के वजुद का जवाब नहीं।
दिन-रात ख्यालो में आकर
उसकी हंसी इस पागल मन में समाती है।.
यादो की पराकाष्ठा पर
वो अपनी हंसी का राज बन
इस मन के सवालो का जवाब नही ।।
परे रख मन से अपनी दैनन्दिनी को
उसकी यादो पर रोज गजल लिखता हूँ ।
डायरी की पराकाष्ठा पर
वो स्वप्न सुन्दरी अतिक्रमण कर
उसकी यादो के ख्यालों का जवाब नहीं
नित परे रख मां-बाप को अपने प्यार में
उस स्वप्न सुन्दुरी के नाम दिल अपना लिखता हूँ ।
फिर वो कमी महसूस कर मेरे प्यार के वजूद पर इतना
बेगुनियाद सवाल रखती है जिसका इस मन में जवाब
नही