*मन के मीत किधर है*
मन के मीत किधर है
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मन के मीत किधर हैँ,
दिल की जीत जिधऱ है।
मृत में जान डाल देगी,
खोया प्यार उधर हैँ।
सोये जों नसीब जागें,
फ़न में तेज अगर है।
कोई रोक न पाया,
मैथुन रीति अमर है।
चाहत रीझ प्रबल है,
राँझा हीर नगर है।
हिय मे खूब अगन है,
साजन को भी खबर है।
मनसीरत तो मगन है,
उन की तीर नजर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)