मन के भाव
मन कमल हो गया , तन सजल हो गया।
छाँव तेरे बदन की, दिखी जब मुझे।।
कल्पना का विषय , मूर्त होकर खड़ा।
सारा चिंतन मनन, सब शिथिल हो गया।।
मन के गहरे निकुंजों, में थी जो छिपी।
सामने वो ही मूरत, प्रकट जब हुई।।
सारे उपमान फीके, से पड़ने लगे।
चेतना के पटल पर, वो छपने लगी।।
राग वैराग होकर, धुला इस कदर।
ज्ञान की ज्योति ,मन में ही जलने लगी।।
मन कमल हो गया, तन सजल हो गया।
छाँव तेरे बदन की, दिखी जब मुझे।।
मन कमल हो गया———–