मन के भाव हमारे यदि ये…
गीत…
मन के भाव हमारे यदि ये,
होंठों तक ना आये होते।
यूँ शब्दों की मणिमाला ले,
गीत नहीं यह गाये होते।
याद हमें आती है जब भी,
बचपन की वो बात पुरानी।
छपने लगती है पलकों में,
अनचाही-सी एक कहानी।।
काश हृदय के कोने से वो,
निर्मित चित्र मिटाये होते।
यूँ शब्दों की मणिमाला ले,
गीत नहीं यह गाये होते।।
बीत गये सावन ये कितने,
याद लिए आई बरसातें।
विह्वलता में डूब- डूबकर,
रोई जाने कितनी रातें।।
काश बहारों के फूलों में,
अपना प्रीत सजाये होते।
यूँ शब्दों की मणिमाला ले,
गीत नहीं यह गाये होते।
मर्यादाओं की टिप्पणियाँ,
झाँक रही थी दरवाजों से।
पूछ रहे थे प्रश्न अनेकों,
रागों की उन आवाजों से।।
काश भरोसे के दर्पण में,
अपना रूप दिखाये होते।
यूँ शब्दों की मणिमाला ले,
गीत नहीं यह गाये होते।।
मन के भाव हमारे यदि ये,
होंठों तक ना आये होते।
यूँ शब्दों की मणिमाला ले,
गीत नहीं यह गाये होते।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)