मन की चुप्पी
निहाल सात साल का था जब उसकी माँ स्मिता की अचानक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी । पिता अजित पैंतीस वर्ष के थे और नहीं जानते थे इस स्थिति को कैसे सँभाले , न उन्हें घर के काम आते थे और न ही उन्होंने कभी पूरी तरह से अकेले निहाल की देख रेख की ज़िम्मेवारी ली थी । सबने राय दी , दूसरी शादी कर लो , पर वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे । उन्होंने निहाल को अच्छे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया , और खुद की शामें , एक गहरी उदासी में ग़ज़लों और शराब के साथ गुज़ारने लगे । निहाल को छुट्टियों में घर ले आते , हर शाम उसे तैरने के लिए या फुटबॉल के लिए ले जाते, दिन भर वह काम वाली बाई के साथ रहता वीडियो गेम्स खेलता , और समय बीत जाता ।
बाप बेटे दोनों चुप थे , बोलने के लिए उनके पास मतलब की बात के सिवा कुछ भी नहीं था । अजित का मन इस चुप्पी से धीरे-धीरे घबराने लगा , और वह एक नए साथी को खोजने लगा । सोशल मीडिया पर उसकी अपनी एक बचपन की सहेली सपना से मुलाक़ात हुई, वह उसके साथ बिताए बचपन के दिनों को याद कर यूँ ही सहज मुस्करा उठा । उसने उसे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी , और धीरे-धीरे जान गया , उसका विवाह अभी तक नहीं हुआ , वह एक विज्ञापन कंपनी में करियेटिव रायटर है , और शादी करना चाहती है ।
उनकी शादी के बाद जब निहाल पहली बार घर आया तो सपना ने कुछ दिन की छुट्टियाँ ले ली । निहाल उसके साथ बहुत घुल मिल गया और घर में फिर से हँसी और बातचीत की आवाज़ गूंजने लगी ।
निहाल के जाने के बाद सपना ने देखा उसकी अलमारी से कुछ पैसे ग़ायब हैं , उसे निहाल पर शक हुआ, परन्तु कहा कुछ नहीं । अगली बार जब निहाल घर आया तो उसके पास एक नया फ़ोन था , पूछने पर उसने बताया कि यह उसे उसके मित्र ने उपहार में दिया है । अब सपना को यक़ीन हो गया कि पैसे निहाल ने ही चुराये हैं । इस बार उसे निहाल के व्यवहार में और भी अजीब बातें नज़र आई, यदि उसे कुछ पसंद आ जाए तो खाता ही चला जाता है , कहीं चोट लग जाए तो घर आकर बताता नहीं , कभी अपनी माँ की बात नहीं करता , घर आना और घर से जाना सब उसके लिए एक सा है , न आने की ख़ुशी न जाने का दुख ।
सपना उसे लेकर परेशान रहने लगी , उस ग्यारह साल के लड़के की ज़िंदगी में ऐसा बहुत कुछ था , जिसे वह समझ नहीं पा रही थी , और उसका बाप इस सबसे बेख़बर था ।
अगली छुट्टियों में जब वह घर आया तो सपना ने कहा ,” अब यहाँ घर से ही पढ़ाई करना चाहोगे ?”
“ हाँ । “ कहकर वह भाग गया ।
सपना बेचैन हो उठी , उसे इस लड़के की भावनायें समझ ही नहीं आती । हर बातचीत अधूरी , सब कुछ सही , उसका यह व्यवहार सपना के भीतर एक बेचैनी छोड़ जाता ।
सपना गर्भवती हुई तो उसने नौकरी छोड़ दी । निहाल का एडमिशन भी स्थानीय स्कूल में करवा दिया । वह स्कूल से आने पर रोज़ उससे पूछती , “ कैसा था तुम्हारा दिन ।”
कुछ ख़ास नहीं , फिर कुछ पल की चुप्पी पर खुद ही शुरू हो जाता कि उसने कौन से विषय में क्या नया सीखा है , स्पोर्ट्स में क्या हुआ, पूरे उत्साह से बताता , परन्तु वह न बताता जो सपना सबसे ज़्यादा सुनना चाहती थी , उसके झगड़े , दोस्तियाँ ।
एक दिन उसने अजित से कहा , “ सात साल के बच्चे की माँ मर गई और तुमने उससे कभी कोई बातचीत नहीं की , बस बोर्डिंग भेज दिया ।”
“ ऐसा नहीं है , छुट्टियों में मैं उसके साथ काफ़ी खेलता था ॥”
“ खेलना एक बात है , बातचीत करना दूसरी । तुम तो संभल गए , मैं तुम्हारी ज़िंदगी में आ गई , पर वह बच्चा तो वहीं का वहीं है , कुछ दबा दबा सा ।”
“ क्यों कुछ कहा है क्या तुमसे?”
“ वह कहता ही तो नहीं है ।सात साल का बच्चा कभी खुलकर रोया भी था या नहीं , मुझे तो यह भी पता नहीं ।”
अजित गहरे विचारों में खो गया ।
सपना ने कहा ,” तुम्हें पता है वह चोरी करता है ?”
“ कब से ?” अजित ने अविश्वास से कहा ॥
“ जब से मैं उसे जानती हूँ । “
“ पर पढ़ाई तो ठीक चल रही है ।”
“ इसीलिए जो उसके व्यक्तित्व के साथ बाक़ी सबकुछ हो रहा है , नज़र नहीं आ रहा , बौद्धिक स्तर पर वह ठीक है , पर भावनाओं को उसने कूड़ा करकट समझ दबा दिया है ।”
अजित ने कुछ जवाब नहीं दिया तो , सपना ने फिर कहा , “ आने वाले समय में यह किस रूप में बाहर आयेंगी , हम कह नहीं सकते , सुख के लिए आत्मविश्वास ज़रूरी है , जब भावनायें इतनी नीचे ढकेलीं जा रहीं है तो आत्मविश्वास भी जाता रहेगा , मन खोखले अभिमान से भर उठेगा ।”
उस रात वे इससे आगे नहीं सोच पाये और उदास मन लिए सो गए ।
दिन बीत रहे थे । निहाल बड़ा हो रहा था , उसकी आवाज़ बदल रही थी , चेहरे पर मसे फूट रहे थे कि एक दिन उनके कुछ मित्र रात के भोजन पर आमंत्रित थे । निहाल को देखकर किसी मित्र ने कहा , “ तेरा बेटी भी बड़ा हो गया है , उसे भी एक पैग बना दे ।”
अजित ने एक नज़र निहाल को देखा , फिर कहा , “ यह घर घुस्सु है, इसे दुनिया का कुछ पता नही , बस दिखने में बड़ा हो गया है ।”
सुनकर निहाल का चेहरा क्रोध से लाल हो गया , सपना ने देखा, वह बार की तरफ़ बड़ रहा है , और आते ही उसके हाथ में जो बोतल लगी , उसने सीधा गिलास में डाला, और एक ही घूँट में गटक गया । सब उसे आश्चर्य से देखते रहे , और वह सड़क पर भटकने के लिए निकल पड़ा ।
वह जानता था लोग उसके बारे में बातें कर रहे होगे , पर उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी , वह भीतर के कोलाहल से परेशान था ।
सबके जाने के बाद अजित उसे ढूँढते हुए सड़क के किनारे आ पहुँचा , जहां वह बैंच पर अकेला बैठा हुआ था ।”
अजित ने उसे शायद पहली बार इस तरह कस कर गले लगाया , और घर ले आया । वह अपने इस बेटे के लिए चिंतित था, वह उसे गले लगा कर फूट फूटकर रोना चाहता था , वह उसे बताना चाहता था , उसकी माँ को खोने का दुख उसका भी उतना ही गहरा है , जितना उसका, पर चुप था ।
उस रात निहाल को बिस्तर में सुलाने के बाद, देर तक सपना और अजित तारों के नीचे लान में बैठे रहे ।
अजित ने कहा ,” हैरान हूँ इस ओर मेरा पहले ध्यान क्यों नहीं गया , अट्ठारह साल का था जब पहली बार घर छोड़कर होस्टल गया था , मुझे लगता था माँ, पाप, दोनों छोटे भाई , दादू , हमेशा मेरे साथ है, इसलिए निहाल के अकेलेपन की ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया । अब समझ रहा हूँ , सात साल का था तो कैसे मैं रोता था तो माँ चुप कराती थी , थोड़ा बड़ा हुआ तो कैसे मुझे दोस्तों के साथ हो जाने वाले झगड़ों से अगाह करती थी , सच पूछो तो वह दिन रात मुझे भविष्य के लिए तैयार कर रही थी , भावनाओं पर नियंत्रण कर कैसे ग़लत सही का निर्णय लिया जाए , सच पूछो तो इसी समय मेरे चरित्र का निर्माण हो रहा था , आज से पहले यह सब मैंने कभी सोचा ही नहीं ।
एक लंबी चुप्पी के बाद अजित ने कहा , “ मैं सोचता रहा वह पढ़ाई में अच्छा कर रहा है , सब ठीक है , वह भावनाओं में पिछड़ रहा है , यह मैंने समझा ही नहीं ।”
“ अभी भी देर नहीं हुई है , वह तेरह का है , तुम उसकी भावनाओं से जुड़ सकते हो , जो तुम दोनों के अंदर दब गया है, उसे मिलकर खोल सकते हो । “ सपना ने अजित का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा ।
“ हु ।” कुछ देर बाद अजित ने साँस छोड़ते हुए कहा , “ पर यह कैसे होगा, इतना अंतराल आ गया है ।”
“ कुछ मायनों में तुम दोनों वहीं खड़े हो , वहीं से अपनी यात्रा शुरू कर सकते हो । तुम माँ और पिता दोनों बन सकते हो । तुम्हें सुनने के लिए मैं हूँ यहाँ ।”
अजित ने सपना का हाथ अपने हाथ में ले लिया, और उसकी नज़र यकायक आकाश की ओर उठ गई , जैसे उस असीम विस्तार से अपने मन के अंधकार को समझने की क्षमता मांग रहा हो ।
… शशि महाजन