मन की ऊर्जा।
मनुष्य के शरीर में मन की अंनत ऊर्जा होती है। जैसे जैसे मनुष्य का शरीर विकास करता है।उसी प्रकार से ऊर्जा का भी संचार होता है।जब मनुष्य बालिग होता है, तो उसका मन संतान उत्पत्ति की ओर दौड़ने लगता है।यह गुण सभी जीवों में पाया जाता है। अपने वंश को बढ़ाने के लिए प्रयास करने लगता है।हर प्राणी मात्र का स्वभाव कामुक हो जाता है।यह मानव मन की वृत्ति होती है।अब उसका मन औरत की तलाश करने लगता है। और औरत का मन पुरुष की तलाश करने लगता है।यह एक प्राकृतिक नियम है। लेकिन साधु संतों ने इसके ऊपर उठकर सोचा।कि क्या हम ब्रह्मचर्य रह सकते हैं।बस, उन्होंने इस ऊर्जा को दूसरी तरफ मोड़ने का प्रयास किया। और योग क्रियाओं के साथ अपने आप को जोड़ दिया। क्योंकि यह काम साधारण नही था। मनुष्य को यह वृत करना बहुत मुश्किल होता है। बाकी सारे काम आसान है।पर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना बहुत कठिन होता है। इस व्रत में महाशक्ति भी होती है। मनुष्य योग क्रियाओं के द्वारा अपने को देवता भी बना सकता है।