मन का द्वंद कहां तक टालू
मन का द्वंद कहां तक टालू
भय से हार कैसे स्वीकारू
चित्त से अनुचित जान पड़े जो
ध्येय को अपने कैसे साधूं
भाग जाऊं मैं रण यह छोड़ कर
कायर ही कहलाऊंगा।
था अयोग्य समक्ष समाज के
कैसे मुख दिखलाऊंगा ।
✍️…S.p
किंतु यह भी कटु सत्य है,
मन को कौन ही साध सका है।।
इच्छाओं से निर्बल व्यक्ति ,
कहां समुंद्र को बांध सका है ।।