मन का चंचल मोर
आँखों पर अपनी मुझे, होता नहीं यकीन ।
फागुन ऐसे वृक्ष पर, बिछा गया कालीन ।।
सुमनाच्छादित डालियाँ, लेती देख हिलोर ।
लगा नाचने यह रुचिर, मन का चंचल मोर ।।
रमेश शर्मा.
आँखों पर अपनी मुझे, होता नहीं यकीन ।
फागुन ऐसे वृक्ष पर, बिछा गया कालीन ।।
सुमनाच्छादित डालियाँ, लेती देख हिलोर ।
लगा नाचने यह रुचिर, मन का चंचल मोर ।।
रमेश शर्मा.