मन का उत्सव
बैजनाथ बाबू बड़ी देर से अपने स्कूटर को किक मारे जा रहे थे पर वह थी कि स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी ऐसा लग रहा था मानो कह रही हो!’बाबू वर्षों तक सेवा कर के थक गई हूं अब रहने दो ,मुझे आराम कर लेने दो,पर बैजनाथ बाबू थे कि मानने को तैयार नहीं थे,,किक पर किक,,धौंके जा रहे थे।
अरे!जान लोगे का इसकी ,घर के अंदर से उनकी धर्मपत्नी चिल्ला के बोली,अरे बूढ़ा गई है,बेच काहें नहीं देते ,कह कह के सब थक गए हैं,पर न जाने कौन सी मुहब्बत है इस स्कूटर से की हटाते ही नहीं,।काहें बेंच दे! अरे दद्दा के निसानी है,,पूरा जवानी एहि स्कूटर पर फर्राटा भरे हैं,,तुमको भी तो यही पर घुमाए थे,लल्लन के यहाँ जलेबी ,चाट एहि पर बैठ के खाने जाती थी ,और तब पूरा मोहल्ला देख के जर बुझाता था भुला गई का,अरे पहली बार लल्ला के एहि पर बैठा के स्कूल ले गए थे,अरे तोहरा खातिर स्कूटर होगा ,हमारा तो यार है,,और यारी कैसी जो छूट जाए,।ह!तुम जय और यह बीरू है,,,अंदर से तिवराइन ने चुटकी ली,,हां वही है ,,कह के बैजनाथ बाबू ने एक आखरी किक मारी और कमाल हो गया,स्कूटर ने घुर्र की आवाज की और स्टार्ट हो गया,वाह रे हमार दोस्त ,लाज रख लिया,कह के बैजनाथ बाबू ने स्कूटर के साइड मिरर में झांका,सर पर बचे दो चार बाल को सवांरा और निकल गए अपनी दुकान की ओर।
बैजनाथ बाबू का पूजा पाठ के सामान का एक छोटा सा दुकान मंडी के तिराहे पर था,पहले दुकान में खूब रौनक थी क्यों कि तब पूरे मंडी में यही दुकान थी,पर अब समय के साथ साथ बाजर का मूड बदल गया,कई और दुकाने खुल गई,अब धंधा बस इज्जत ढकने के लिए था।
बैजनाथ बाबू के दो पुत्र और एक पुत्री थी ,पुरानी बाजर में पुस्तैनी मकान था,ले दे के एक दुकान,एक घर,दो पुत्र एक पुत्री और एक पत्नी यही सम्पत्ती थी उनकी।
पहले खूब ठाठ था पर अब हालात बदल गए ,बच्चों को पढ़ाना कठिन हो रहा था,उनकी छोटी छोटी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी हाल यह हो गया था कि बच्चे अब उतना सम्मान भी नहीं करते उन्हें लगता कि बैजनाथ बाबू जान बूझकर उनको कोई सामान नहीं दिलाते थे।
बैजनाथ बाबू के पड़ोस में जोगिन्दर जी का परिवार रहता था पंजाबी थे जो सायकिल की दुकान चलाते थे ,दूसरे तरफ नैनु मियां थे जो कबाड़ का धंधा करते थे।
पहले इनके परिवारों में खूब बनती थी,कोई त्योहार हो या उत्सव सब मिलकर मनाते थे,,पर समय के साथ साथ जब बैजनाथ बाबू की हालत खराब और इन दोनों की मजबूत होने लगी तो मानव स्वभाववश बैजनाथ बाबू इनसे दूर हो गए,क्योंकि नैनु जब भी कहता कि बैजनाथ बाबू स्कूटर खटारा हो गई है मेरे यहाँ कबाड़ में बेच दो और उस पैसे से जोगिंदर के यहाँ से साइकिल खरीद लो,तब बैजनाथ बाबू को लगता कि यह दोनों उनकी गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं,एक दिन खूब कहा सुनी हुई ,उस दिन से आज तक इन सब मे बातचीत नहीं हुई।
पापा इस बार दीवाली में मुझे सायकिल चाहिए किसी भी तरह,।तीन तीन किलोमीटर पैदल जाते हैं हम दोनों,फिर कोचिंग भी।,हमारे सारे दोस्त सायकिल से आते हैं कुछ तो स्कूटी से भी आ रहे, रौनक ने कह सुनाया,।
बेटा!कुछ दिन और काम चला लो!फिर कुछ कर के ले लेंगे,नहीं हमें इस बार ही चाहिए ,आपको क्या आपके पापा ने तो आपको उतना पहले स्कूटर दे दिया था और आप हमें एक सायकिल नहीं दिला पा रहे इससे अच्छा तो हम अनाथ ही रहते।
यह बात सुनकर बैजनाथ बाबू को कंट्रोल न रहा,एक ज़ोरदार तमाचा रौनक के गाल पर पड़ा,वह बिलबिला कर रोने लगा,मोनू भागकर कमरे में जाकर पढ़ने लगा,।
अरे!काहें मार दिए इसको तिवराइन ने साड़ी के पल्लू से सुबकते हुए रौनक का आंसूं पोछते हुए झल्लाकर बोली, अरे!क्या गलत कह दिया,कुछ दिया ही नहीं इन्हें। इनका बचपन खराब कर दिया,।आभाव में जिला रहे हो इनको।
बैजनाथ कुछ बोले नहीं,गुस्से में घर से बाहर निकल कर चौराहे की तरफ बढ़ गए।
आज पहली बार बैजनाथ बाबू ने रौनक पर हाथ उठाया था,उन्हें इसका बड़ा पछतावा हो रहा था,, मन ही मन सोंचने लगे
अरे!सही ही तो कहा था रौनक ने, क्या दिए उन सब को हम,हमको तो सब मिलता था बचपन मे पर तब भी खुश नहीं रहते थे पिताजी से,,ये बच्चा लोग तो बहुत सह रहे हैं,,आज तो पाप हो गया हमसे,हमरे नाकामी है यह,,,
विचार करते करते बैजनाथ बाबू मोहन के चाय की दुकान पर पहुंच गए,चाय ऑर्डर की और ब्रेंच पर धम्म से बैठ गए।
बाजार में काफी भीड़ थी दो दिन बाद ही दीवाली थी, एक के बाद एक बैजानाथ बाबू ने कई कप चाय पी डाली घण्टों बैठे रहे यह सोंचते हुए की चाहे जो भी हो इस बार बच्चों को साइकिल तो खरीद ही दूंगा,सोंचते सोंचते कब इतना वख्त हो गया कि मोहन के दुकान बंद करने का टाइम हो गया पता ही नहीं चला।बोझिल कदमों से घर पहुंचे ,बच्चे सो गए थे,तिवराइन बरामदे में बैठी इंतजार कर रही थी,,,खाना निकाल दें!तिवराइन ने पूछा,नहीं भूख नहीं है कह के बैजनाथ बाबू बरामदे में रखे खाट पर लेट गए,आज उन्हें नींद नहीं आ रही थी बस दिमाग मे साइकिल खरीदने का विचार बार बार घूम रहा था कि कौन जुगत लगाया जाए,,,,।
दुकान नहीं जाना है क्या!तिवराइन की आवाज कान में पड़ी तो बैजनाथ बाबू की आंख खुल गई ,घड़ी देखा तो पौने नव हो गया था,पर आज जैसे बैजनाथ बाबू को दुकान खोलने की तेजी ही नहीं थी जबकि त्योहार के समय दुकान ठीक ठाक चलती थी
तिवराइन हैरान थी,आज दुकान भी लेट हो गया और चेहरा भी कुछ अजबे चमक रहा है पगला तो नहीं गए तुम,कुछ नहीं आज थोड़ा काम है बाहर इसीलिए लेट से जाएंगे दुकान,,,,,अच्छा!
और यह चमक? अरे उत्सव है तो खुश न रहे का,,,पहले तो कभी नहीं रहे,,ठीक है अब बतकही न करो चाय बनाओ,,,तब तक हम नहा धो ले,,।
शाम धीरे धीरे गहरा रही थी ,कुछ एक पटाखे आज दीवाली से पहले ही बच्चे जला रहे थे मानो इस शाम का स्वागत कर रहे हो,,,बैजनाथ बाबू के बरामदे में अंधेरा छाया था,,दीपक जलाने का समय हो गया था,,घर के मंदिर में दीपक जला तिवराइन ने रौनक को आवाज दी कि एक मिट्टी का दीपक बरामदे में भी रख आए।
रौनक मिट्टी का दीपक लेकर बरामदे में पहुंचा,उसे उस धीमी रोशनी में कुछ चमचमाती हुई दिखी ,उसकी उत्सुकता बढ़ गई और नजदीक गया ,,और चिल्ला पड़ा ,मम्मी जल्दी आओ,,उसकी आवाज सुनकर तिवराइन भागी भागी बरामदे में आई मोनू और ज्योति भी पीछे पीछे आ गए,,,बरामदे में चमचमाती नई रेंजर सायकिल खड़ी थी,,सब एकटक उसे देखे जा रहे थे,,रौनक सायकिल पर कूद के चढ़ गया,घण्टी बजाई और चिल्ला पड़ा कितनी अच्छी घण्टी है इसकी,,,सब सायकिल को चारो तरफ से देखने लगे,, तभी तिवराइन तेजी से अंदर गई,,थाल में अगरबत्ती और रोली ले आई सायकिल की आरती उतारी,,उसे टिका और रौनक से बोली जा अब घूम आ,,रौनक ने मोनू को पीछे बैठाया और घण्टी बजाते हुए निकल गया बाजार घूमने।
उधर चाय की दुकान पर बैजनाथ बाबू आज फिर कई कप चाय पी गए,पर आज दिमाग मे कोई उलझन नहीं थी,आज चाय रोज से मीठी लग रही थी,,
चलो ठीक हुआ इस खटारा से मुक्ति मिला ,थक गया था किक मार मार के,,और देखों न ,इसकी वजह से मेरा तोंद भी निकल आया था,,अब सुबह सुबह जब पैदल चल कर दुकान जाऊंगा तो यह भी अंदर हो जाएगा और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।
मिडिल क्लास आदमी जिंदगी भी गजब होती है उसे हर बार एक खुशी पाने के लिए दूसरे को कुर्बान करना पड़ता है और वह दूसरी ख़ुशी को यह कह के स्वीकार कर लेता है कि पहले वाले में बहुत कमी थी।
आज पैदल ही गुनगुनाते हुए बैजनाथ बाबु घर पहुंचे,बरामदे में एक बार उस ओर देखा जिधर रोज स्कूटर खड़ा करते थे,एक अजीब सा खालिपन महसूस हुआ,वह रुके नहीं अंदर चले गए ,आज कमरे में ही खाना मंगा लिया,तिवराइन ने बहुत पूछा कि सायकिल कैसे लिए पर बैजनाथ बाबू कुछ बोले नहीं और खाना खाकर जल्दी सो गए।
अगले दिन सुबह बहुत जल्दी दुकान पर चले गए,पर दुकान में मन नहीं लग रहा था,,पूरा दिन किसी तरह काटा,,जैसे ही शाम होना शुरू हुआ जल्दी जल्दी दुकान में दीपक जला ,पूजा कर,के घर की तरफ चल दिये।
घर पहुंचते पहुंचते अंधेरा गहरा हो गया ,पूरा मोहल्ला दीपक की रोशनी से जगमगाया हुआ था,पर बैजनाथ बाबू को अपने अंदर घुप्प अंधेरा महसूस हो रहा था,।
घर के बरामदे प्रवेश करते समय बैजनाथ बाबू की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उधर देखे जिधर स्कूटर था ,मन नहीं माना,,कनखी से उधर एक नजर डाली,,और सकपका गए,,,दीपक की रोशनी में उनका स्कूटर अपनी जगह खड़ा था,एक पल के लिए बैजनाथ बाबू को यकीन नहीं हुआ,एक अधीर बालक की तरह दौड़ के स्कूटर के पास पहुंच गए ,,सीट पर हाथ फेरा ,हैंडल घुमाया और आंख के दीपक से लुढ़क आये आंसू को धीरे से पोंछा।
यह जानने के लिए की क्या हुआ है वह घर के अंदर तेजी से गए, अंदर का दृश्य देख वह वहीं बूत बन गए,,यह क्या नैनु मियां ,और जोगिन्दर अपने परिवार के साथ अंदर बैठे थे,तिवराइन
उन्हें चाय और मिठाइयां दे रही थी,बच्चे बगल में बड़े प्रशन्न मुद्रा में खड़े थे।
बैजनाथ बाबू को देख सभी खड़े हो गए,,कुछ पल के लिए अजीब सन्नाटा छाया रहा,फिर नैनु मियां ने शांति भंग करते हुए कहा बैजनाथ बाबू दीवाली मुबारक,जोगिन्दर भी बोल पड़ा तब तक रौनक दौड़ के एक कुर्शी नैनु मिया के बगल में रख आया ,बैजनाथ बाबू कुछ बोले नहीं,जोगिन्दर ने पानी का ग्लास बैजनाथ बाबू को दिया,एक बार मे सारा पानी गटक कर बैजनाथ बाबू बोले नैनु तुम मेरा स्कूटर क्यों वापस लाये मैं तुम्हें पैसे नहीं दे पाऊंगा,अरे भाई पैसे किसने मांगे हैं,तब तक रौनक बैजनाथ बाबू के बगल में आके खड़ा हो गया,
पापा हमने सायकिल मांगी थी पर आपके स्कूटर के बदले नहीं,।जब मैं सायकिल लेकर बाजार में गया तो देखा कि आपकी स्कूटर नैनु चाचा के दुकान में खड़ी थी,,उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि आप स्कूटर बेच कर हमारे लिए सायकिल ले आये ,मुझे बहुत बुरा लगा ,मैं जोगिन्दर चाचा के दुकान पर गया और अपनी साइकिल उन्हें वापस देकर पैसे मांगने लगा जब उन्होंने कारण पूछा तो उन्हें सारी बात बता दी,तब वह मुझे लेकर नैनु चाचा के दुकान पर गए,उनसे बात की और स्कूटर लेकर घर आ गए,।
बैजनाथ बाबू यह सुनकर शर्म से सर नहीं उठा पा रहे थे जिनको उन्होंने बुरा समझा आज उन्होंने ही उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दे दी थी,।
जोगिन्दर ने बैजनाथ बाबू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ,अब आंख के आंसू को पोछो चलो दीवाली मनाए,पटाखे जलाए,।बैजनाथ बाबू उठे और जोगिन्दर को गले लगा लिया,यह देख सब मुस्कुराने लगे ,तभी मोनू ने आंगन में एक फुलझड़ी जला दी रंग बिरंगी रोशनी से पूरा घर भर गया,सब बड़े उमंग से उत्सव मनाने लगे लेकिन बैजनाथ बाबू के मन में प्रेम का एक नया ही उत्सव मन रहा था जिसकी झलक उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी।