मन करता है अभी भी तेरे से मिलने का
सह न पाई हूं यह गम,तेरे से बिछड़ने का।
मन करता है अभी भी तेरे से मिलने का।।
ज़ख्म जो तूने दिए मुझे,नासूर बन चुके है।
मन करता है अब तो उन्हे भी मसलने का।।
भले ही छोड़ दिया अकेला तुमने मुझको।
मन करता है अभी भी तेरे साथ चलने का।।
जब याद आती है तेरी रात की तन्हाई में।
मन करता है उस वक्त, तन्हा में रोने का।।
बर्बाद किया जिसने हमें,ये राज न खोलेंगे।
मन करता है अब ये राज सबको बताने का।।
हम उनके कुछ भी नहीं कहते है तो कहने दो।
दिल करता है अभी भी उन्हें दिल से लगाने का।।
कहना है जो कह दिया मैने इस गजल में तुम्हे।
रस्तोगी अब और क्या लिखे इस फसाने का।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम