मन और अनुबंध
मनुष्य एक मात्र
विचारवान/ निर्णय-सम्मत/कल्पनाशील/याद्दाश्त/बुद्धिजीवी प्राणी है.
ये सबमें व्यक्तिगत तौर से किसी मनुष्य में इक्ट्ठे नहीं मिलती.
यह किसी व्यक्ति-विशेष या धर्म कौम के संस्कार संस्कृति भी नहीं.
मन क्या है/मन बँटता क्यों है/सर्वसम्मति क्या है ?
विचार एवं विचारधाराऐं क्या है ?
ये अनुबंध की अनुबंधक क्यों हैं !
मान्यताओं के दृष्टिकोण से आदमी विभिन्न धाराओं का शिकार हो जाता है.
बहुत अधिक जनसंख्या किसी एक काल्पनिक ईश्वर/भगवान के प्रकोप से बचने के लिये प्रकृति अस्तित्व के रहस्य को जानने की बजाय उसे पूजना शुरू कर देती है, ये आलसी मंदबुद्धि श्रेणी के लोग है.
दूसरी तरह की जनसंख्या की श्रेणी के लोग भी लगभग मेल खाते है.
वे भी एक ऐसी मान्यताओं को पकड़ते है कि कुछ लोग उन्हें मानने से उन पर आने वाली समस्या दूर रहेगी, हमें बिना कुछ किये हमें पारिवारिक सुख शांति मुनाफा मिलते रहेगा. ये लोग बाबा/साधु/गुरु को आराध्य मानकर मनोबल बढाते रहते है और खुद के हाथ खाली और उन्हें अमीर बना देते हैं.
तीसरे किस्म की जनसंख्या उन मानसिक लोगों की जकड़ में पड़ जाते है जैसे वे कहे उसने सिद्धि को प्राप्त किया है और उन पर आने वाली हर समस्या का समाधान तंत्र-मंत्र-टोटके भूतविद्या का हवाला देकर उन्हें मुक्त कर देंगे.
चतुर्थ श्रेणी की मानसिकता वाले लोग विचारक/दार्शनिक/वैज्ञानिक लोग होते है. वे जबतक किसी पहलू को नहीं मानते जब तक उसे जान कर परख ना लें, सामाजिक सःतर पर लोग इन्हें नास्तिक समझते हैं.
जबकी केवल वे ही सिर्फ़ और सिर्फ़ आस्तिक लोग है. न भ्रम में पड़ते.
और भ्रमित ठगी से बचाने वाले एकमात्र जमात, इस दुनिया एवं संसार को प्राप्त है.
धर्म/धार्मिकता/राजनीति/व्यवसाय/व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति के अपने निजकर्म वा सोच. इस विषय पर बाध्य करना/वंचित करना तबाही अथवा विनाश की ओर बढ़ती दुनिया जाने.