मनोरम छंद
यह भूल नही सकता मनुआ दुख ।
सच है किसको मिलता जग में सुख ।।
अब सोच रहा इतना पगला तब ।
खुद कैद हुआ घर मे अपने जब ।।
रमेश शर्मा..
यह भूल नही सकता मनुआ दुख ।
सच है किसको मिलता जग में सुख ।।
अब सोच रहा इतना पगला तब ।
खुद कैद हुआ घर मे अपने जब ।।
रमेश शर्मा..