मनुष्य जीवन – एक अनसुलझा यक्ष प्रश्न
कभी-कभी लगता है कि हम नियति के हाथों की कठपुतलियां हैं, वह जैसा चाहती है, वैसा हमसे कराती है।
हमारी प्रज्ञा शक्ति , हमारा अंतर्ज्ञान, हमारी व्यवहारिकता हमारे कुछ काम नहीं आती, जो अप्रत्याशित होना है वह होकर रहता है, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रहता है।
पूर्वानुमान एवं पूर्वाभास भी अनुपयोगी सिद्ध होते हैं । जीवन के विभिन्न चरणों में हम नियति के अधीन होकर मानसिक एवं शारीरिक कष्ट भोगने के लिए मजबूर होते हैं।
मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक का घटनाक्रम विभिन्न काल खंडों में विसंगतियों से भरा होता है, जिसका कोई तर्कसंगत उत्तर संभव ना होकर यक्ष प्रश्न बनकर रह जाता है।
सफलता एवं असफलता के मानदंड अपनी व्यवहारिकता खोकर निष्क्रिय से प्रतीत होते हैं।
कर्म प्रधान जीवन दर्शन की परिभाषा भी धूमिल सी लगने लगती है।
किसी व्यक्ति विशेष का जीवन कंटकों से भरा क्लेशपूर्ण कष्टप्रद होता है , तो दूसरी तरफ किसी अन्य व्यक्ति का जीवन बाधा रहित सुखप्रद होता है।
विभिन्न दार्शनिकों एवं आध्यात्मिक चिंतकों द्वारा इस विषय में गहन चिंतन करने के पश्चात भी किसी
ठोस निष्कर्ष पर ना पहुंचना, यह दर्शाता है कि अभी तक मानव जीवन एक रहस्य पूर्ण चक्र है, जिस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है।
यद्यपि कुछ आध्यात्मिक चिंतकों द्वारा इसे पूर्व जन्म के किए गए कर्मों का फल भोगना प्रतिपादित किया है । परंतु किसी ठोस प्रमाण के अभाव में यह तर्क केवल परिकल्पना बन कर रह गया है।
अच्छे एवं बुरे कर्मों का फल इस जन्म अथवा पुनर्जन्म में भोगने का तर्क भी विसंगतियों से भरा हुआ है। क्योंकि अच्छे कर्म करने पर भी इस जीवन में प्रतिफल सकारात्मक रूप में उपलब्ध नही होता है, जबकि इसके विपरीत बुरे कर्मों का प्रतिफल सदैव बुरा होता है ऐसा भी विदित नहीं है।
अर्थात्, अच्छे एवं बुरे कर्मों के प्रतिफल हमेशा अच्छे एवं बुरे होते हैं, यह तर्क अपनी प्रामाणिकता पर खरा नहीं उतरता है।
इस विषय में मंथन करने से यह स्पष्ट होगा कि अच्छे बुरे कर्मों की परिभाषा भी विसंगतियों से भरी हुई है । किसी व्यक्ति विशेष के लिए कोई कर्म करना उसे अच्छा प्रतीत होता है , तो वही कर्म किसी दूसरे व्यक्ति को बुरा लगता है।
अतः अच्छे एवं बुरे कर्मों के विश्लेषण की कसौटी उस व्यक्ति विशेष की मानसिकता एवं व्यक्तिगत मूल्यों पर निर्भर होती है।
सामाजिक जीवन में कर्म की परिभाषा में पाप एवं पुण्य को जोड़कर विभिन्न धर्मों के प्रतिपादकों ने धर्म के प्रचार एवं प्रसार हेतु विभिन्न काल खंडों में सामाजिक जीवन में बदलाव लाने की दिशा में प्रयास किया है, जिससे अन्याय एवं अत्याचार की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सके एवं सामाजिक जीवन का सुचारू रूप से निर्वाह हो सके।
ज्योतिष विद्या में मनुष्य के जीवन चक्र को ग्रह एवं नक्षत्रों के प्रभाव से जोड़कर प्रतिपादित किया गया है , जो प्रायिकता के सिद्धांत
(Theory of Probability ) पर आधारित है ।
प्रायिकता के सूत्र का उपयोग किसी घटना के घटित होने की संभावना की गणना करने के लिए किया जाता है. जिसमे घटनाएँ भिन्न-भिन्न होती है. जैसे, सांख्यिकी, गणित, विज्ञान, दर्शनशास्त्र आदि जैसे क्षेत्रों में संभावना व्यक्त करने के लिए प्रायिकता का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है।
अतः जोतिष्य विद्या में फलादेश एक अनुमानित कथन है , जिसकी संभावना प्रश्नवाचक विचारणीय परिकल्पना है।
अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मनुष्य का जीवन एक रहस्य से परिपूर्ण घटनाक्रम है , जो एक अनसुलझा यक्ष प्रश्न बनकर प्रस्तुत होता है।