मनुज हैं
देह मनुज पाई है हमने,
दनुज से कर्म क्यों करें।
प्यास बुझा न सकें अगर,
अंगार उनपर क्यों झरें।
तोड़ फोड़ से होड़ कैसी,
हो सके वतन पर ही मरें।
पशु नहीं मनुज हैं हम सब
कुछ पर उपकार भी करें।
-गोदाम्बरी नेगी
देह मनुज पाई है हमने,
दनुज से कर्म क्यों करें।
प्यास बुझा न सकें अगर,
अंगार उनपर क्यों झरें।
तोड़ फोड़ से होड़ कैसी,
हो सके वतन पर ही मरें।
पशु नहीं मनुज हैं हम सब
कुछ पर उपकार भी करें।
-गोदाम्बरी नेगी