मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी -घनाक्षरी छंद के इस भेद में 31 वर्ण होते हैं।8,8,8,7वर्णों पर यति उत्तम मानी जाती है। वैसे 16,15 वर्णों पर भी यति का प्रयोग किया जा सकता है। चरणांत में लघु ,गुरु का प्रयोग सरस और लालित्यपूर्ण होता है।
(1)
छंदबद्ध करने हैं,शब्द काव्य नाम यदि,
मात्रा विधान पहले,सभी सीख लीजिए।
ज्ञान फिर आवश्यक,छंद के विधान का है,
लय यति ध्यान रख,छंद लिख दीजिए।
थाती सब हिंदी के हैं,छंद जो भी पौराणिक
इनको बचाने हेतु, थोड़ा श्रम कीजिए।
काम श्रमसाध्य पर,रोचक सरस अति,
करके सृजन छंद,काव्य रस पीजिए।।
(2)
देता है साहित्य जहाँ,सुसंस्कार मूल्य शिक्षा,
रहता उस देश में, सदा ही अमन है।
दिल में उतरती है, बात यदि छंदबद्ध,
करती कुविचारों का ,पूर्णतः शमन है।
अनेकानेक ललित, मात्रिक और वर्णिक,
छंदो से सुसज्जित ये,हिंदी का चमन है।
सिखाए जो भी छंद ये ,प्राचीन नवांकुरों को,
ऐसे विज्ञ छंदकार, सुधी को नमन है।।
(3)
प्राप्त हो वरदहस्त,मठाधीशों का जिन्हें भी,
ऐसे चाटुकार यहाँ ,मंच चढ़ जाते हैं।
करके छिछोरापन,सुना-सुना चुटकुले,
कविता को पीछे छोड़,आगे बढ़ जाते हैं।
रोका-टोकी करे यदि,इनकी जो कभी कोई ,
उल्टे उसी पर सारे ,दोष मढ़ जाते हैं।
सीधे सच्चे साधक जो,मातु वीणापाणि के हैं,
चुपचाप प्रतिमान ,काव्य गढ़ जाते हैं।।
(4)
फैलाता जो व्यक्ति नहीं,व्यर्थ कहीं तर्कजाल,
कहते यथार्थ सभी,वही होनहार है।
सीखते हैं सभी यहाँ,आपस में मिलजुल,
होता नहीं पूर्ण कोई,मानता संसार है।
मान लेता स्वयं को जो,सर्वगुणयुक्त व्यक्ति,
ऐसे दंभी को सीख की,कहाँ दरकार है।
उसे ही बस सीख दें,रखे जो विनम्र भाव,
हर एक व्यक्ति को तो,सिखाना बेकार है।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय