मनहरण घनाक्षरी
शब्द और भाव लिए,साहित्य सुगंध लिए
सृष्टि का सृजन कर,सपने सजायेंगे।
ख्वाबों का उड़ान भर,कल्पना सृजित कर
साहित्य समन्दर में,लहरें जगायेंगे।
साहित्य समाजवाद,करें न कभी विवाद,
सभी को साहित्यमय,भाव से बतायेंगे।
हिन्दी का विकास होगा,समग्र आभास होगा
हिन्दी भाषी क्षेत्र सब,नाम से बनायेंगे।॥१॥
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शब्द मोती चुनकर,भाव भरे बदलों में,
बारिश के बुन्द रुप, सभी को दिखायेंगे।
रहेगे आनंद सब, ख्वाबों के उड़ान में,
धरती-आकाश सब,दुरियां मिटायेंगे।
स्वच्छंदता रुप लिए,स्वतंत्रता सीख लिए,
करे सब विचरण, सबको मिलायेंगे
यही दिल आस लिए,जिगर में प्यास लिए,
सही राह चलने को, उनको सिखायेंगे।,॥२॥
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