मनहरण घनाक्षरी (मित्र इत्र )
मनहरण घनाक्षरी
स्वभाव का प्रभाव
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मित्र इत्र के समान,बंद करके न रखो,
थोड़ा सा भी खुला तो ,महकता अभी भी है
तोता बूढा हो चला तो,अंग थोड़े शिथिल हैं,
पर मौंका पड़ते,चहकता अभी भी है ।
मन मोर राम में रमा है राम की कृपा है,
बदली को देखके बहकता अभी भी है ।
ऊपर सफेदी देख,अंगारा बुझा सा लगे,
राख को हटाओ तो,दहकता अभी भी है।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
27/10/22