मनवा के चुल्हिया, इरिखा के जरौना
मनवा के चुल्हिया, इरिखा के जरौना,,
पाकेला सबुर के, खिचड़िया ए रामा,,
पाकेला सबुर के, खिचड़िया ए रामा,,
खाए के एतने सही, खुद्दी चूनी जुरताऽ,,
घर में न केहू, केहू दुअरा न रोवताऽ,,
काबू में रहा तनिका, मनई सुगौना।।
मनवा के चुल्हिया, इरिखा के जरौना,,
पाकेला सबुर के, खिचड़िया ए रामा,,
झोरा अ टेंट खाली, बा त रहे दा,,
दुनिया जवन मरजी, चाहे कहे दा,,
चदरा अकास तुहके, भुइंया बिछौना।।
मनवा के चुल्हिया, इरिखा के जरौना,,
पाकेला सबुर के, खिचड़िया ए रामा,,
परोपकार से बड़ा कौनो, धन धरम नईखे,,
सीखा “गोपाल जी” जीअल जाला कइसे,,
आखिर में मिली सबके, लकड़ी अ लवना।।
मनवा के चुल्हिया, इरिखा के जरौना,,
पाकेला सबुर के, खिचड़िया ए रामा,,
— गोपाल दूबे