“मनमोहना”
अधर पर बाँसुरी धर कर किया मनमीत हैतुमने,
बांधकर नेह छन्दों से, लिखा मधुगीत है तुमने ।
टूटी मन में जो कलुषित वासना की थी बिषय गगरी,
मेरे। मन मोहना छूकर, भरा उर प्रीत है तुमने ।।
अधर पर बाँसुरी धर कर किया मनमीत हैतुमने,
बांधकर नेह छन्दों से, लिखा मधुगीत है तुमने ।
टूटी मन में जो कलुषित वासना की थी बिषय गगरी,
मेरे। मन मोहना छूकर, भरा उर प्रीत है तुमने ।।