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3 May 2019 · 3 min read

मनकही…….

मनकही.. .

बचपन की यादें……
आज के समय मे जिंदगी कितनी
फास्ट हो गई है किसी के पास किसी के लिए समय ही नही है
वही बोरिंग रोजर्मरा की लाइफ या फिर खाली समय मे सोशल मीडिया मे व्यस्त हो जाना लेकिन यँहा भी ये देखो कि सोशल मीडिया मे उलझे हम लोग सोशल नही हैं खैर छोड़िए आज ऐसे ही बैठे बैठे पुराने दिन याद आ गए बचपन कितना मस्त था और कितना कुछ था आस पास लेकिन आज के दौर मे बचपन कितना उलझा हुआ है बालक अवसाद की ओर बढ़ रहे है लगातार सुसाइड और एक बालक द्वारा दुसरे बालक की हत्या करने की खबरें हर रोज कहीं न कहीं पढ़ने और सुनने को मिल जाती है सच मे मन बहुत व्यथित हो जाता है इसका कारण कहीं न कहीं बचपन पूरी तरह से न जी पाना है उन पर अत्यधिक दबाव और माता पिता की आशाएं उन पर बोझ बनती जा रही है जिससे वह अपने बचपन से दूर होते जा रहे हैं………

मेरी स्मृतियों मे आज भी वो दिन कैद हैं जब ग्रीष्म कालीन अवकाश होता था दो महीने का तो अक्सर मेरी छुट्टियाँ अपनी नानी के यँहा बितती थी वह दिन याद कर आज भी चेहरे पर मुस्कान छा जाती है यह ग्रैटर नोएड़ा से सटा एक गाँव है बैदपुरा जँहा मैने अपने बचपन का काफी समय बिताया यह गाँव राजेश पायलेट की वजह से भी काफी फेमस रहा गाँव की सौंधी मिट्टी की खुशबू और फिजाओं मे महकती शीतल हवा आत्मा को तृप्त कर देती थी चूल्हे की रोटी का आंनद रोटी बनने के बाद चूल्हे की गर्म राख मे प्याज और आलू को दबा देना फिर कुछ देर बाद निकाल कर खाने मे जो स्वाद आता था वह आज कहीं नही मिलता पहले किराने की दुकान पर सब्जी भी मिला करती थी तो मै अक्सर नानी की दुकान पर ही बैठता था वँहा रखे ताजा टमाटर मे नमक की डली अंदर घुसेड़ कर टमाटर को चूसने मे बहुत मजा आता था खेतों मे सुबह सुबह घूमने जाना वँहा ट्रैक्टर और बुग्गी की सवारी का तो मजा ही क्या
फिर हाते मे जाना जँहा गाय और भैंस बंधा करती थी मामा को सानी करते देख उनकी मदद करना न्यार काटना भुस मे मिला खल तैयार कर गाय भैंसो को खिला फिर उनका दूध काढना धन से सीधा मुँह मे गाय का गरम गरम दूध पीना
सचमे बहुत मजा आता था मौसीयों के साथ दोपहर मे पत्ते खेलना अष्टा चकम खेला अरे हाँ उस समय मे कॉमिक्स का बहुत चलन था तो मै उनकी दुकान के आगे चौतरी पर चादर
बिछा कॉमिक्स की दुकान लगाता था उस समय कॉमिक्स एक रुपया दिन के किराए के हिसाब से जाती थी नंदन चंपक चंदा मामा लोटपोट सरिता चाचा चौधरी नागराज जैसी कितनी ही किताबे पढ़ने को भी मिलती थी उनकी चक्की और पाँचवी कक्षा तक स्कुल हुआ करता था चक्की पर आटा भी पिसा सुबह सुबह स्कुल मे मौसी के जाने से पहले चला जाता था वँहा जा बच्चो को पढ़ाने के बाहने पीट दिया करता था उनकी माताएँ आकर कहती बहनजी तुम्हारे मेमहान ने तो हमारा लाला पीट दिया फिर मौसी मुझे वँहा से भगा दे देती कहती तू स्कुल मे नही आएगा नानी के हाथों निकाला गया लोनी घी का स्वाद कैसे भूल सकता हूँ बिना सब्जी उससे ही रोटी खा और मट्ठा पी कर पेट भर जाता था फिर शाम को पंतग उड़ाना वँहा जा टीवी को तो भूल ही जाते थे क्योंकि लाइट का तो नामो निशान ही नही था लेकिन टीवी की कमी महसूस ही नही होती थी इतना कुछ था करने को समय का पता ही नही चलता था नीम के पेड़ की छाँव मे ढका आँगन कितना ठंडा होता था चौपाल पर जाकर बैठ बढ़े बुढ़ो की बातें सुनने मे बहुत कुछ सिखने को मिलता था रात को सोने से पहले वो हाँडी का दूध जरुर नाक मुँह सिकोड़ने पे मजबूर कर देता था सचमे लाजबाव थे वो दिन लेकिन अब गाँव मे भी वो बात नही रही उनका शहरीकरण होने के कारण वह भी अपना अस्तित्व खो रहे हैं……………

#अंजान……

Language: Hindi
Tag: लेख
564 Views

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