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20 Nov 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
20/11/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

है अथाह वात्सल्य भरा, हिंद महासागर सदृश, ममता की प्रतिरूप।
महा कारुणिक भाव भरे, शब्दों में संतत्व है, भीषण प्रणी अनूप।।
है प्रतिमूर्ति सुछंदों की, है स्वभाव निर्मल सरल, सत्य साधना स्तूप।
ये मेरा सौभाग्य रहा, मेरी थी नजदीकियां, धन्य किया हे भूप।।

मन मुद्रा में लीन रहा, मैं याचक हूँ सामने, यूँ ही रखो समीप।
चलती रहे सतत यह क्रम, तुझ पर ही त्राटक करूँ, जला प्रेम का दीप।।
प्रेम पुरोधा राहों के, तुम मुझको जब से मिले, बना ज्ञान शुभ द्वीप।
जब जब भी यह जीवन हो, रहो प्रदर्शक बनकर सदा, होना नहीं प्रतीप।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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