*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
13/11/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
ये कैसे मन सनक भरा, कोई बदला ले रहा, अब तक हूँ अंजान।
मुझे याद है मेरा जीवन, हर गतिविधियां श्रेष्ठ थी, मुफ्त किये सब दान।।
कैसी आपत्ति हुई अब, वफादार बनकर रहा, सदा लुटाता जान।
मरे सभी सम्मान पदक, धूल मिली सब मेहनत, समय सिखाता ज्ञान।।
बदनामी ही झेल रहे, दाग लगे छूटे नहीं, करके थके उपाय।
अब त्रिशंकु सी हालत है, तुम कहना जायें कहाँ, खुले कहाँ अध्याय।।
अब तक जो भी हैं साथी, सब मतलब के यार हैं, कोई नहीं सहाय।
ननकी सनकी कर मन की, है वजूद तेरा वही, कहता चल है न्याय।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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