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9 Oct 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
09/10/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

मेरा सपना एक यही, जब मुड़कर देखूँ कहीं, कभी न आये शर्म।
कर्तव्यों पर सदा सजग, संस्कारों को मान दूँ, चलूँ सजग सद्धर्म।।
मानवतावादी निष्ठित, ज्ञान परम उद्देश्य हो, करता चलूँ सुकर्म।।
जीवन ही उत्कर्ष बने, मृत्यु महोत्सव सा रहे, बता सकूँ यह मर्म।।

रहे स्वयं पर गर्व सदा, मेरा जीवन श्रेष्ठ था, कर्म सभी उत्कृष्ट।
लोकरीति व्यवहारों पर, हो सहर्ष चलता रहा, अनुचर भी हैं हृष्ट।।
जीवनशैली आकर्षक, प्रेम पंथ को कर सका, स्वस्थ हृदय से पृष्ट।
निज स्वरूप का भान किया, रोमांचित नित चित्त से, होता रहता दृष्ट।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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