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29 Sep 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
29/09/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

हे रमणी अति प्रिय भार्या, सदा सुसज्जित मन सदन, करती निकट निवास।
मन मनोज मुदितावस्था, प्रेम पथिक सहचारिणी, स्वर्गिक मिले मिठास।।
हैं ओष्ठ सुमन रतनारी, चिंतन चित शृंगार हो, अद्वितीय आभास।
सदा चपलता हैं चितवन, मन मथती मनबोधिनी, रहती है बिंदास।
जीवनशैली आध्यात्मिक, हो कैसे यह पति पतित, संभव नहीं कयास।।

काया क्यारी चमक दमक, निज मुख के मुस्कान सब, तुमसे सब उत्कर्ष।
सुख दुख में जो साथ मिला, बनती मेरी ढाल हो, आगे रहे सहर्ष।।
साथ सखा सी देती हो, विपदाओं की गर्जना, करती हो संघर्ष।
यों ही संबंधों में रहकर, गुजरेगी अब हर घड़ी,
जीवन के प्रति वर्ष।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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