*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
14/09/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
शीशे से भी पत्थर की, यारी हो जाती यहाँ, रखते हैं कुछ शर्त।
अपनी अपनी सीमाएं, उलंघना करना नहीं, रहना अपने पर्त।।
शर्तों पर कायम जब तक, दोनों के अस्तित्व हैं, सुखमय हर आवर्त।
नियम शर्त उल्लंघन जब, कोई करता एक दिन, जाते दोनों गर्त।।
टकराने की जिद्द जहाँ, होती है ये जानिए, नाते सारे नष्ट।
बहकावे में अगर रहे, निश्चित बंधन टूटते, कहलाते पथ भ्रष्ट।।
आपस में तय हो जाये, निश्चित हो अपने दायरे, तभी न होगा कष्ट।
बातों में पारदर्शिता, जो कहना हो कह सकें, खुलकर सब कुछ स्पष्ट।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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