*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
07/09/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
दंडपाणि जब भी आये, दंड संहिता खोलकर, अगर सुनाता दंड।
दंडविधायक से कहना, सुनो दंडनायक जरा, खुद पर बड़ा घमंड।।
दंडपाल हम कोरट के, सभी समय पर कर रहे, हम भी हैं बरबंड
अगली गर्मी पर आओ, शादी मुश्किल तय हुई, इसी दिसंबर ठंड।।
राक्षस दण्डक वास करे, दंडकवन में उस समय, पहुँचे हैं श्रीराम।
लखन सिया को साथ लिए, सघन दंडकारण्य में, देखे शोभा उद्दाम।।
दंडनीय सब कृत्य थे, वध करते कोदंड से, रघुवर जिनका नाम।
खत्म किया आतंकी को, प्रचलित जो थी दंडविधि, दंडी पाते विश्राम।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)