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6 Sep 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
06/09/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

व्रत रखती हो प्राण प्रिये, आज शुभम् हरितालिका, हरि पुनीत उपवास।
पतिव्रता तुम धन्य महा, कर्म सुहागन का किया, करती हृदय उजास।।
हे चित्तवासिनी धन्य अहो, पावन यह व्रत निर्जला, तन को देती त्रास।
भाग्य उदय तुमसे मेरा, एकनिष्ठ मेरे लिए, हर पल पुलकित रास।।

हे भार्या प्रिये भामिनी, तुमसे ही सौभाग्य सब, जीवन पथ अनुकूल।
चित्तभूमि हर्षित तुमसे, प्रस्तारित हर छंद में, दिल से करूँ कुबूल।।
सक्रियता इन अंगों की, चित्तशुद्धि कारण तुम्हीं, आजीवन मशगूल।
अक्षय धन पाया मैंने, सदा सुवासित जो रहे, तुम हो ऐसा फूल।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)

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