‘ मधु-सा ला ‘ चतुष्पदी शतक [ भाग-1 ] +रमेशराज
चतुष्पदी ——-1.
नेताजी को प्यारी लगती, केवल सत्ता की हाला
नेताजी के इर्दगिर्द हैं, सुन्दर से सुन्दर बाला।
नित मस्ती में झूम रहे हैं, बैठे नेता कुर्सी पर,
इन्हें सुहाती यारो हरदम, राजनीति की मधु शाला।।
+ रमेशराज +
चतुष्पदी——–2.
मुल्ला-साधु-संत ने चख ली, राजनीति की अब हाला
गुण्डे-चोर-उचक्के इनके, आज बने हैं हमप्याला।
नित मंत्री को शीश नवाते, झट गिर जाते पाँवों पर
ये उन्मादी-सुख के आदी, प्यारी इनको मधु शाला।।
+ रमेशराज +
चतुष्पदी——–3
गर्मागर्म बहस थी उस पर, उसने लूटी है बाला
वही सत्य का हत्यारा है, उसने ही तोड़ा प्याला।
वही शराबी बोल रहा था बैठ भरी पंचायत में-
‘केवल झगड़ा ठीक नहीं है, मधु शाला में ‘ मधु – सा ला ’।।
+ रमेशराज +
चतुष्पदी——–4
बेटे के हाथों में बोतल, पिता लिये कर में प्याला
इन दोनों के साथ खड़ी है, कंचनवर्णी मधुबाला।
गृहणी तले पकौड़े इनको, गुमसुम खड़ी रसोई में
नयी सभ्यता बना रही है, पूरे घर को मधुशाला।।
+ रमेशराज +
चतुष्पदी——–5
मल्टीनेशन कम्पनियों की, भाती लाला को हाला
नेता-अफसर-नौकरशाही, सबके सब हैं हमप्याला।
इन्टरनेट-साइबरकैफे-मोबाइल की धूम मची
आज मुल्क में महँक रही है अमरीका की मधुशाला।।
+ रमेशराज +
चतुष्पदी——–6.
गौरव से हिन्दी को त्यागा, मैकाले की पी हाला
दूर सनातन संस्कार से, लिये विदेशी मधुबाला।
कहता देशभक्त ये खुद को, बात स्वदेशी की करता
हिन्दी छोड़ गही नेता ने, अंग्रेजी की मधुशाला।।
+ रमेशराज +
चतुष्पदी—–7.
गायब हुई चूडि़याँ कर से, आया हाथों में प्याला
पोंछ रही सिन्दूर माँग से अब भारत की नवबाला।
अपना चीरहरण कर डाला खुद ही अपने हाथों से
बनी विदेशी हाला नारी, घर से बाहर मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——-8.
थाने में जब रपट लिखाने आयी सुन्दर मधुबाला
तुरत दरोगाजी ने गटकी बोतल से पूरी हाला।
नशा चढ़ा तो कहा प्यार से-‘अरे! देखिए मुंशीजी
रपट लिखाने को आयी है मधुशाला में मधुशाला’।।
+रमेशराज
चतुष्पदी——–9.
प्रेमी कहे प्रेमिका से अब ‘पिकनिक पर चल खण्डाला
वहाँ पिलाऊँ कामदेव की मैं हाला ओ मधुबाला।
बीबी बच्चों की चिन्ता से मुक्त हुआ में जाता हूँ
झाँसा दे दे तू भी पति को, आज चलेंगे मधुशाला’।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–10.
नैतिकता ने छल के डाली, विहँस गले में वरमाला
किया वर्जना के सँग यारो, आदर्शों ने मुँह काला।
बने आधुनिक संस्कार सब तोड़ सुपथ की परिपाटी
आज उजाला ढूँढ रहा है अंधकार की मधुशाला।।
= रमेशराज =
चतुष्पदी——–11.
फाइल अटकी थी दफ्तर में, लाया था केवल हाला
गलती का एहसास उसे है, अब हाला सँग मधुबाला।
चमक रही अफसर की आँखें चेहरे पर मुस्कान घनी
ठेकेदार और अफसर की महँकेगी अब मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–12.
वह शराब का किंग, उसी की जगह-जगह बिकती हाला
नयी-नयी नित बाला भोगे मंत्रीजी का हमप्याला।
हर मंदिर की प्रमुख शिला पर नाम उसी का अंकित है
सबने जाने मंदिर उसके, पीछे छूटी मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–13.
कौन व्यवस्था से जूझेगा, तेवर गुम है कल वाला
कलम अगर कर में लेखक के, दूजे कर में है प्याला।
जनता को गुमराह कर रहे चैनल या अखबार सभी
इनके सर चढ़ बोल रही है अनाचार की मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–14.
शोधकार्य में गुरुवर कहते ‘शिष्य बनो तुम हमप्याला’
गुरु को शिष्या लगती जैसे पास खड़ी हो मधुबाला।
नम्बर अच्छे वह पा जाता दाम थमाये जो गुरु को
विद्या का आलय विद्यालय आज बना है मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–15.
दिन-भर मंच-मंच से उसने जी-भर कर कोसा प्याला
किया विभूषित अपशब्दों से उसने हर पीने वाला।
रात हुई तो उस नेता के नगरवधू थी बाँहों में
जिसकी आँखों में थी बोतल और बदन में मधुशाला।।
+रमेशराज
चतुष्पदी——–16.
नेताजी को चौथ न देता दारू की भट्टीवाला
इसी बात पर चिढ़े हुए थे क्यों न हुआ वह हमप्याला।
भनक लगी दारू वाले को पहुँच गया वह कोठी पर
मंत्रीजी ने पावन कर दी ‘नम्बर दो की’ मधुशाला।।
+रमेशराज
चतुष्पदी——–17.
भले आबकारी अफसर हो, डालेगा कैसे ताला
खींची जाती जिस कोठी में कच्ची से कच्ची हाला।
भले पुलिस को ज्ञात कहाँ पर सुरा-सुन्दरी का संगम
मंत्रीजी के साले की है यारो कोठी-मधुशाला।।
+ रमेशराज
चतुष्पदी——–18.
आज युवा हर चिन्ता त्यागे खोज रहा है नवबाला
रात-रात भर जाग रहा है लेकर दारू का प्याला।
कोई टोके तो कहता है ‘फर्क नहीं कोई पड़ता
रोजगार की चिन्ता किसको, बनी रहे बस मधुशाला’।।
+ रमेशराज
चतुष्पदी——–19.
हर विद्रोही स्वर थामे है कायरता का अब प्याला
आज हमारी लक्ष्मीबाई बनी हुयी है मधुबाला।
सिर्फ शिखण्डी जैसा लगता बस्ती-बस्ती में पौरुष
सबके भीतर पराधीनता महँक रही ज्यों मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–20.
जब आयी हाला की खुशबू, छूट गयी कर से माला
राम-नाम को छोड़ साधु ने थाम लिये बोतल-प्याला।
शाबासी दी झट चेले को ‘काम किया तूने अच्छा’
दो छींटे हाला के छिड़के, प्रकट हो गयी मधुशाला।
रमेशराज
चतुष्पदी——–21.
‘गोबर’ से बोतल मँगवायी, ‘धनिया’ से खाली प्याला
बड़े मजे से घट में अपने पूरी बोतल को डाला।
जब सुरूर में आया मुखिया, बोला-‘कहना धनिया तू-
‘होरी’ की छोरी लगती है मुझको जैसे मधुशाला’।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–22.
मजबूरी में कंगन गिरवीं रखने आयी मधुबाला
देख उसे मस्ती में झूमा अपनी कोठी में लाला ।
हँसकर बोला मधुबाला से ‘दूर करूँ सारे दुर्दिन
एक बार बस मुझे सौंप दे अपने तन की मधुशाला’।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–23.
व्यभिचारी ने प्रेम-जाल में तुरत फँसायी नवबाला
फिर मित्रों को खूब चखायी उसके अधरों की हाला।
अभी लिखे थे दुर्दिन भारी, उस अबला की किस्मत में
बिककर पहुँची जब कोठे पर, बनकर महँकी मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–24.
रही व्यवस्था यही एक दिन धधकेगी सब में ज्वाला
कल विद्रोही बन जायेगा दर्दों को पीने वाला।
राजाजी को डर है उनकी पड़े न खतरे में गद्दी
इसीलिये वे बढ़ा रहे हैं हाला-प्याला-मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–25.
बेचारे पापा को लगता बेटी का जीवन काला
आँखों में आँसू वरनी के, लिये खड़ी वह वरमाला।
दूल्हा क्या है मस्त शराबी पिता छलकता प्याले-सा
पूरे के पूरे बाराती चलती-फिरती मधुशाला।।
+रमेशराज
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+रमेशराज, 15/ 109, ईसानगर , निकट-थाना सासनीगेट , अलीगढ़-202001
मो.-9634551630