“मधुशाला” मुक्तक
“मधुशाला” मुक्तक
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छुआ दे आज अधरों से अधर का जाम मतवाला।
बुझे ना प्यास महफ़िल में लगे फ़ीकी सरस बाला।
भिगो कर जिस्म नूरानी फ़िज़ाओं में महक भर दूँ।
रहूँ ना होश में अपने पिला दे आज मधुशाला।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मों-9839664017)