मधुमास के दिनों की याद आ रही है
दिगपाल छन्द
221 2122 221 2122
मधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।
महकी हुई फिजाएं, मनको लुभा रही है।
जब फूल-फूल तितली, खुशबू बिखेरती थी।
महकी हुई हवाएं, संवाद छेड़ती थी।
कोयल सदा वनों में, हैं राग प्रीत गाये।
मौसम वही सुहाना, मुझको सदा लुभाये।
महकी हुई धरा मन, मेरा लुभा रही है।
मधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।
भौंरे कली-कली पर, है राग गीत गाते।
मन में उमंग मेरे, कब सर्द अंत आते।
वो फूल देख सरसों, दिल ने उछाल मारी।
श्रृंगार आज सुंदर, लिख दूँ नई खुमारी।
हर डाल पेड़ पौधे, कलियाँ खिला रही हैं।
मधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।
चलती बयार ऐसी, कुछ तान छेड़ती हो।
लगती बहार मन में, रस राग घोलती हो।
देखो मिठास दिल में, मधुमास की भरी है।
है डाल-डाल मंजरी, हर आम की भरी है।
खिल के ‘अदम्य’ को यूँ कलियाँ चिढ़ा रही हैं
मधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।
■अभिनव मिश्र”अदम्य