मद्य पान।
मद्यपान का पूर्णतः त्याग किए हुए लगभग छह माह पूर्ण हो गए फिर भी …
एक दिन एक पुराने मद्य मंडली वाले मित्र मिल गए। वे माने नहीं और जबरन मुझे लेकर मधुशाला में गए। अनिच्छा थी किंतु मैं उन्हें मना नहीं कर पाया। वहां 30 ml के पैग से जो उत्सव आरंभ हुआ वह 270 ml पर जाकर समाप्त हुआ। मधुशाला से बाहर निकला तो एक मित्र और भेटा गए। उन्होंने मेरी ओर शंकालु दृष्टि से देखा। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि एक चिंटू पैग ही पीया है। पर उन्हे विश्वास नहीं हुआ यह मुझे पूरा विश्वास था।
घर पहुंचा तो पिता जी ने कहा – तुमने पुनः पीना आरंभ कर दिया है।
मैं – नहीं पिताजी।
पिताजी – झूठ न बोलो , राजू ठाकुर का फोन आया था मुझे उसने बताया है।
मैं ( हैरत से ) – यह आप क्या कह रहे हैं , राजू ठाकुर को आत्महत्या किए हुए तो दो बरस बीत गए हैं। वह आपको कैसे फोन कर सकता है।
पिताजी कोई उत्तर देते उसके पहले ही मेरी नींद खुल गई और सपना टूट गया।
मैं सोच में पड़ गया की मस्तिष्क भी कैसे कैसे खेल करता है। मैंने पीना छोड़ दिया है तो मुझे स्वप्न में उकसा रहा है।
विचित्र बात यह कि पिताजी का स्वर्गवास हुए चार साल और मित्र का स्वर्गवास हुए दो साल हो चुके हैं।
मृत मित्र पिताजी से मेरी शिकायत कर रहा है और मृत पिताजी मुझे पुनः मद्यपान करने लिए डांट रहे हैं।
मानव मस्तिष्क से गूढ़ संभवतः इस जग में कुछ और नहीं है।
Kumar Kalhans