मदिरा सवैया
मदिरा सवैया
देखत सावन मस्त हुआ मन बादल प्यार लुटावत है।
घोर घटा उमड़ी घुमड़ी नित बारिश नीर गिरावत है।
नाचत मोर उठावत पंख सदा हरि का गुण गावत है।
मानव प्यार समुद्र बना अपने उर में सुख पावत है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
मदिरा सवैया
देखत सावन मस्त हुआ मन बादल प्यार लुटावत है।
घोर घटा उमड़ी घुमड़ी नित बारिश नीर गिरावत है।
नाचत मोर उठावत पंख सदा हरि का गुण गावत है।
मानव प्यार समुद्र बना अपने उर में सुख पावत है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।