मदनहर छंद
मदनहर/मदनगृह छंद
मात्रा भार 40
10/8/14/8
प्रारंभ 2 लघु,अंत 2 दीर्घ से अनिवार्य
भजता जो ईश्वर,कहता रघुबर,वही भक्ति रस है पीता,खुद में जीता।
मन होता निर्मल, अति शांत धवल,सुन्दर मधुरिम सुपुनीता,पढ़ता गीता।।
वह कभी न विचलित,धर्म सुसज्जित,नाम वही जग में पाता,सदा सुजाता।
सबका हितकारी,चित्त मुरारी,वह स्थिर मन का बन जाता,जग को भाता।।
जितना जो आस्तिक,नहीँ अनैतिक,दिव्य कमल दल सा होता,सत्य हमेशा।
बनता वह मानव,हर्षित अभिनव,देता उत्तम सन्देशा,शुभ वेशा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।