मत बांटो इंसान को
मत बांटो इंसान को!
मंदिर मस्जिद गिरजाघर ने, बांट लिया भगवान को!
धरती बांटी सागर बांटा,मत बांटो इंसान को!!
विनय महाजन रचित गीत की इन गूढ़ पंक्तियों को समझना अनिवार्य है, वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर!
प्रत्येक भारतवासी को अपनी मातृभूमि से प्रेम है! थोड़ा बहुत कम ज्यादा भी नहीं है, बिल्कुल समान है बल्कि एक से अधिक है दूसरे की देशभक्ति! अगर कम अथवा ज्यादा है तो इसके कई कारण हैं; जैसे कि जीवन स्तर, शिक्षा का स्तर, अनुभव, तकनीकी उपलब्धता, पारिवारिक वातावरण, वैचारिक धरातल, निर्णयशक्ति और अन्य अनेक कारण! अधिकतर देखने में आता है कि आभासी दुनिया में लोग स्वहस्ताक्षरित पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर, यहां वहां प्रमाणपत्र बांटते फिरते हैं कि फलां व्यक्ति देशभक्ति का दूत है,तो फलां व्यक्ति को देश से कोई मतलब नहीं है! इस प्रकार के प्रमाणपत्र वितरक, वर्तमान के जयचंद हैं जिनको देश, देशभक्ति या देशप्रेम से कोई मतलब नहीं है! उनका काम है वैचारिक प्रदूषण को बढ़ावा देना और राजनैतिक नौटंकी में भाग लेकर,थोथी भड़ास निकालना! वरना तो प्रत्येक भारतीय नागरिक अपने-अपने काम में व्यस्त है; मस्त है! सही समय पर सही निर्णय लेकर,हर व्यक्ति यह बता देता है कि उसे अपनी मातृभूमि जान से भी ज्यादा प्यारी है! गड़े मुर्दे उखाड़ कर इधर -उधर फेंक कर राष्ट्रीय पर्यावरण की सेहत और सुरक्षा दोनों से खिलवाड़ करने वाले लोग ही वास्तव में असल देशद्रोही हैं! वरना राम को रहीम से कोई शिकायत नहीं है और जोसफ को गुरमीत का पूरा भरोसा है!
राजनीति के अखाड़े में आम आदमी का कूद जाना और जुमलेबाजी की पोटली खोल-खोलकर सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का निरंतर प्रयास करना सरासर ग़लत ही नहीं बल्कि दंडनीय अपराध भी है! आम आदमी का दायित्व है कि देश की मुख्यधारा में जुड़ कर अपने सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करे,न कि वैचारिक गुलाम बनकर, आराम से तैरकर किनारे जाती नैया को डुबो बैठे और कोसता रहे, आने-जाने वाली सरकारों को!
विरोध करना है तो वास्तविक बुराइयों का करना चाहिए न कि घोड़े और गधे सभी पर एक चाबुक से प्रहार करते हुए हो-हल्ला करना चाहिए! जिम्मेदार नागरिक की भूमिका, बहुत महत्वपूर्ण कार्य है! और इस सर्वोच्च दायित्व को देशवासी ईमानदारी से निभाते हैं। इतिहास उठाकर देखा जा सकता कि जब-जब देश पर विपत्तियों के पहाड़ टूटे हैं;हर आम-ओ-खास ने जिम्मेदार भूमिका निभाई है। महामारी हो, युद्ध आपात हो अथवा प्राकृतिक प्रकोप हो; एकजुट होकर मुकाबला किया गया है! हां कुछ विरले और नकारात्मक लोगों को गिनती में माना ही नहीं जाना चाहिए! सदियों से यही परंपरा है हमारे राष्ट्रीय मूल्यों की, कि भले ही वैचारिक मतभेद हों,कर्म वैविध्य हो परन्तु जब कभी मातृभूमि पर संकट आया है तो सभी भारतीय नागरिक एकजुट हो मानवता के अग्रदूत बनकर, अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर शीश कटाने को आतुर हो उठते हैं। यही भावना हमारी वास्तविक शक्ति है! वैचारिक विविधता में भावनात्मक एकता प्रबल ही नहीं पुष्ट भी है।
सामाजिक समरसता और सौहार्द तो नमन योग्य है! अभी पिछले दिनों रामनवमी के अवसर पर मेरे शहर में भगवान राम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा था और उसी दौरान आयोजित शोभायात्रा पर दूसरे धर्म और संप्रदाय के सभ्य नागरिक पुष्प वर्षा कर रहे थे तथा शोभायात्रा में शामिल नगरवासियों की जल सेवा कर रहे थे। पूरे भारतवर्ष का चक्कर इस भावना से प्रेरित होकर लगाया जाए तो हमारी एकता को समझा और सराहा जा सकता है परन्तु एक शर्त है कि तमाम तरह के पूर्वाग्रह दफ़न करके ऐसी पावन यात्रा का शुभारंभ किया जाए और जिस वास्तविकता से साक्षात्कार हो,वह प्रत्येक भारतीय के साथ बेझिझक साझा की जाए। अपवादों को खत्म कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यदि कुछ लोग देश धर्म को गौण मानकर, समाज में अव्यवस्थाएं फैलाते हैं तो उनके लिए कठोर दण्ड का विधान है संविधान में! कभी-कभी लगता है कि देशप्रेम और देशद्रोह दोनों को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है क्योंकि देशप्रेम पर किसी विशेष व्यक्ति,जाति, धर्म या संप्रदाय का अधिकार नहीं है और न ही समाज और देश के लिए नकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करने वाले लोग पूजनीय हो सकते हैं। हमारी भारतभूमि अद्भुत और अलौकिक शक्तियों का अकूत खजाना है! यहां भूमि की गहराइयों में मूल्यवान खनिजों के भंडार हैं तो यहां जन्म लेने वाले मनुष्यों के मन की गहराइयों में मानवीय मूल्यों के दुर्लभ कोश भरे हैं। देश की अस्मिता और मानवता की गरिमा को उच्चतम शिखर पर सुशोभित रखना प्रत्येक भारतीय का प्रथम दायित्व है। ये दायित्व हमारे जीवन के अधिकार से भी बहुत बड़ा है। अर्थात् देश धर्म ही हमारे प्राणों का आधार है। यह बात हमें जन्म के साथ ही घुट्टी में पिला दी जाती है कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी! इसी बात को अर्थात् इसी सत्य को सभी धार्मिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है चाहे भाषा में विविधता हो परन्तु भाव सबमें एक ही भरा हुआ है। चंद स्वार्थी लोग, जिनका कारोबार ही समाज को बांटकर खाना है; ऐसे लोग चाहे किसी भी धर्म या जाति के हैं सदैव निंदनीय और त्याज्य हैं।
शिक्षा प्राप्त करके प्रत्येक भारतीय को यह शोध कर लेना चाहिए कि भारतीयता में निहित मूल्य ही शाश्वत हैं,शेष सबकुछ गौण है। तथा साथ ही उन भ्रमित करने वाले कारकों और कारणों को भी शोध लेना चाहिए जो समाज और देश को बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पंचभूतों से निर्मित सभी मानव समान हैं परन्तु पारिवारिक, सामाजिक संस्कार दीक्षित करके, विविधता युक्त समरस धाराओं का निर्माण करते हैं। आगे चलकर रुढ़िवादी और विभेदकारी मानसिकता के लोग प्रभावित करने की कोशिश करते हैं कि भारतीय समाज में अपना धर्म,अपनी जाति,अपना संप्रदाय और अपना रंग श्रेष्ठ है! शेष सबकुछ निम्न है। जो इन लोगों के प्रभाव में आ गया,समझिए देशद्रोही बन गया अन्यथा विवेकशील मनुष्य न जाति से प्रभावित होते हैं न ही धर्म से; बल्कि कर्म से प्रभावित होकर स्वाभिमान से जीवन यापन करते हैं।
वर्तमान समय में हर भारतवासी को यह आत्मावलोकन करना है कि भारत एक देश नहीं है,एक भावना है और यह भावना ही सर्वोपरि है, श्रेष्ठतम है! मानव-मानव में कोई भेद नहीं है,सभी पांच तत्वों से निर्मित हैं। सभी की आवश्यकताएं एक समान हैं! भेदभाव को दूर रखते हुए एक ही मुख्य-धारा में सबको बहते जाना है तथा भारतीय भाव को प्रबल करना है तथा विघटनकारी तत्वों की पहचान करके, उनको नष्ट करना है। मानव को मानव से बांटना बहुत ख़तरनाक ही नहीं आत्मघाती कदम है।
विमला महरिया “मौज”