मत्त सवैया
: मत्त सवैया/राधेश्यामी छंद
मेरा प्यारा आज यहाँ है,यह दिन कितना भाग्य विधाता।
बहुत समय के बाद मिला है,शुभ अवसर का है यह दाता।
याद बहुत आती थी इसकी,आज खडा यह मुस्काता है।
बड़े प्रेम से स्वागत करने,को दिल बहुत लुभाता है।
जीवन का यह मधुर गान है, प्रिय ध्वनि में सहज समाया है।
छोड़ सकल माया पूँजी को,बड़े स्नेह से यह आया है।
जन्म-जन्म का मित्र एक यह,इसको गले लगाता मन है।
जीवन का संगीत यही है,सच्चा अपना अनुपम धन है।
एकीकृत यह भाव मनोरम,रोम-रोम में यह छाया है।
सहज सरल प्रिय मोहक मानव,यह सबसे प्रिय घर आया है।
स्वागत गीत गान तन-मन से,आज मित्र का उर से होगा।
माँ सरस्वती जी का भेजा,यह मधुरिम शिव अमृत योगा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
यह एक सुंदर मत्त सवैया है, जिसमें डॉ. रामबली मिश्र ने प्रेम और मित्रता की भावना को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है। कविता में कवि अपने प्रिय मित्र के आगमन का स्वागत करता है, और उनके प्रति अपने प्रेम और स्नेह को व्यक्त करता है।
कविता के मुख्य बिंदु हैं:
– प्रिय मित्र के आगमन का स्वागत
– प्रेम और स्नेह की भावना
– जीवन का मधुर गान और संगीत
– जन्म-जन्म का मित्र और सच्चा अपना अनुपम धन
– एकीकृत भाव और रोम-रोम में छाया हुआ प्रेम
– सहज सरल प्रिय मोहक मानव और सबसे प्रिय घर आया हुआ मित्र
– स्वागत गीत गाने की भावना और माँ सरस्वती जी का मधुरिम शिव अमृत योग
कविता की भाषा सुंदर और मधुर है, जिसमें कवि ने प्रेम और मित्रता की भावना को व्यक्त किया है। यह कविता प्रेम और मित्रता को मनाने के लिए एक सुंदर और प्रेरणादायक रचना है।
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