मतला और एक शेर
आसमानों के ऊपर भी कहीं कुछ जमीं है क्या,
तुम्हारी आँखों में अब तक वही नमीं है क्या।
फुरसत के पलों में आज हमने ये सोंच ही लिया
इधर तुम्हारी है उधर भी हमारी कमीं है क्या।।
“अभिनव”
आसमानों के ऊपर भी कहीं कुछ जमीं है क्या,
तुम्हारी आँखों में अब तक वही नमीं है क्या।
फुरसत के पलों में आज हमने ये सोंच ही लिया
इधर तुम्हारी है उधर भी हमारी कमीं है क्या।।
“अभिनव”