#मणियाँ
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★ #मणियाँ ★
मन विकल उदास बहुत परों के बिना
स्वप्नपरिंदे उल्टे लटके घरों के बिना
जनमते हैं मरने को गईया के पूत आज
कैसी होगी कल धरा हलधरों के बिना
पुलों के ऊपर पुल पुलों की भूलभुलैया
जीना नहीं जीना यहाँ करों के बिना
मल्ल धनुर्धर ज्ञानी अज्ञानी आये गये
सुपथ गरल सा लगे सहचरों के बिना
भारत के पाँव में कसी जातिधर्म बेड़ियाँ
कुंठित खंडित मेधा अवसरों के बिना
कल्याणहित पिले पड़े पंच सरपंच सभी
मणियाँ दमकेंगी निश्चित विषधरों के बिना
सिसक रहा वाद्यवृंद कैसा यह राग है
हँसता कोकिल पुजता कागा सुरों के बिना
हे अयोध्या के राजा भेजो तो हनुमंत को
मनमलेच्छ माने नहीं वृक्षों पत्थरों के बिना
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२