मटिये में जिनिगी
मटिये में जिनिगी
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मटिये में जिनिगी सनात रहे हमरो त,
मटिये के माई कहि सिरवा झुकाईले।
मटिये के मानी गुनवान हम सबका से,
मटिये के गुन सुत-उठी हम गाईले,
मटिये से मिले फल मटिये से मिले जल,
मटिये के दिहल अनाज हम खाईले-
मटिये में जिनिगी सनात रहे हमरो त,
मटिये के माई कहि सिरवा झुकाईले।
मटिये से बने ईंटा मटिये उगावे बाँस,
मटिये उगावे सूत रसरी बनाईले,
रोज हम करीं गुनगान येह मटिया के,
मटिये के घर में आराम हम पाईले-
मटिये में जिनिगी सनात रहे हमरो त,
मटिये के माई कहि सिरवा झुकाईले।
मटिया महान हवे वेद आ कुरान हवे,
मटिये परान हवे सबके बताईले,
मटिये त धन देला मटिये जनम देला,
मटिये के सेवा में ई मनवा लगाईले-
मटिये में जिनिगी सनात रहे हमरो त,
मटिये के माई कहि सिरवा झुकाईले।
मटिया इयार हवे अमृत के धार हवे,
मटिये के सुबे-साँझ तिलक लगाईले,
मटिये से सोना-चानी निकलेला हीरा-मोती,
मटिये के डीजल से चकिया चलाईले-
मटिये में जिनिगी सनात रहे हमरो त,
मटिये के माई कहि सिरवा झुकाईले।
‘आकाश महेशपुरी’ मटिये उगावे जड़ी,
जड़िया के खाइ हम जरवा भगाईले,
जरवे ले नाहीं पेटगड़ियों भगाईं हम,
भागे जब रोगवा त कविता सुनाईले-
मटिये में जिनिगी सनात रहे हमरो त,
मटिये के माई कहि सिरवा झुकाईले।
– आकाश महेशपुरी