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10 Mar 2024 · 1 min read

मजाज़ी-ख़ुदा!

मर्द को अपनी मर्दानगी पे बड़ा फ़ख़्र है
मगर उसकी ज़िम्मेदारियों से बेख़बर है
किरदार सवालिया निशानों से है घिरा
तब भी बना बेपरवाह घूमता बेफ़िक्र है
नज़र ऐसी जैसे अन्दर तक झाँक लेगा
मौक़े छोड़ता ही नहीं मर्द करता जब्र है
मज़लूम औरत मर्द के ज़ुल्म सहती रहे
बेहिस है बना जैसे छाया काला अब्र है
मर्दों की शिकायत औरतें करें किससे
मुजरिम ही मुंसिफ़ बना बेकार जिक्र है
मर्द ने औरत को नज़रबंद करके रक्खा
कहा पर्दानशीन से तवक़्क़ो बस सब्र है
रिवाजों मज़हबों के हवाले हिदायतें दीं
पाबंदियाँ निभाना ही औरत का फ़र्ज़ है
उम्मीदें औरत से लगाकर हक़ जताया
उसे मजाज़ी-ख़ुदा का चुकाना क़र्ज़ है!

Language: Hindi
136 Views
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