मज़िल का मिलना तय है
काबू में हम बस उसे ही
रखने की करते हैं कोशिश
खाते में जिंदगी के
हर तरंग तय है
साँस और पलक भी
काबू से हैं परे ये
मियाद जब तलक है
चलना भी इनका तय है
जो अपने काबू में नहीं है
और राह भी हो निर्णीत
बस यकीन से इस सफर में
जो बहते रहे यूँ ही
मज़िल का मिलना तय है
अतुल “कृष्ण”