मज़हब के रंग मे तूं मत रंग
मज़हब के रंग मे तूं मत रंग?इंसानियत के रंग मे तू रंग जा.
कितनी भी दुशमनी हो कारीगर, इक बार फिर तू दोस्त बन जा.
शायर©किशन कारीगर
मज़हब के रंग मे तूं मत रंग?इंसानियत के रंग मे तू रंग जा.
कितनी भी दुशमनी हो कारीगर, इक बार फिर तू दोस्त बन जा.
शायर©किशन कारीगर