मज़हबी दंगों में रंजिशें
मज़हबी दंगों में रंजिशें भी खूब सरेआम हुआ?
आदमी ही आदमी के क़त्लेआम मे है लगा हुआ?
बुद्धजिल ज़ाहिल बन गए सब इन मज़हबी दुकानदारों के?
दरख़्वास्त करे ‘किशन’ की यूँ न कर? मगर सब खून का प्यासा बन गया?
शायर ©किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)