मजबूरी
बुढ़ी दादी ( हम सब उसको इसी नाम से बुलाते थे ) छाड़ू – पोछा – बर्तन करती थी उस दिन भी रोज की तरह अपना काम कर रही थी पेपरवाले का पैसा देना था अम्माँ ने एक मैगज़ीन में पैसे रख दिये की पेपरवाला निचे से साईकिल की घंटी बजायेगा तो अम्माँ उपर से उसके पैसे गिरा देंगी…अम्माँ अपने काम में व्यस्त हो गईं इधर बुढ़ी दादी छाड़ू – पोछे के बाद बर्तन करने बैठी ही थी की पेपरवाले की घंटी सुनाई दी अम्माँ उसको पैसे देने गईं तो देखा की पैसे वहाँ नही थे अम्माँ ने हम लोगों से पूछा ” यहाँ पैसे रखे थे कहाँ गये ?” हम सबने ( मैं मेरी बड़ी बहन और छोटा भाई जो चौदह साल का था ) बोला की हमने तो नही लिए तब तक घर में कोई और नही आया था समझते देर ना लगी …छोटे भाई ने जाकर पूछा ” बूढ़ी दादी तुमने किताब में रखे पैसे तो नही लिए ?” उसने मना कर दिया लेकिन जिसने कभी गलत काम नही किया हो वो गलत काम पचा नही सकता , बर्तन करते हुये उसके हाथ तेजी से काँप रहे थे अम्माँ को समझते देर ना लगी अम्माँ ने पूछा ” बूढ़ी पैसे की ज़रूरत है ?” बूढ़ी दादी रोने लगी और बोली की उसके बेटे उसका पैसा ले लिए हैं खाने को भी पैसा नही है और अपने आँचल में से पैसे निकाल कर अम्माँ को पकड़ाया उसकी बात सुन अम्माँ रोने लगीं अंदर जाकर और पैसे लेकर आयीं और बूढ़ी दादी को देते हुये बोलीं बूढ़ी तुमको बताना चाहिए था पैसे माँग लेती जो काम तुमने कभी नही किया मजबूरी ने तुमसे वो भी करवा दिया ,अम्माँ जाकर खाना लाईं उसको दिया और अंदर चलीं गईं….खाना खा कर बूढ़ी दादी ना जाने क्या सोचती हुयी बाहर जाने लगी ये देख बगल में खड़ा छोटा भाई बोला ” कहाँ जा रही हो बूढ़ी दादी जैसे काम करती हो काम करो ” हम और छोटा भाई क्षण भर के लिए आवाक् रह गये क्योंकि छोटे भाई की बात सुन बुढ़ी दादी उसके पैर छूने लगी भाई ने तुरन्त उसको उपर उठाया और बोला ” बूढ़ी दादी ये क्या कर रही हो ? जाओ काम करो ” ये बोल भाई अंदर आ गया और मैं वहाँ खड़ी बूढ़ी दादी और उसकी आँखों को देख रही थी जो झर – झर बह रही थीं और बहुत आशीर्वाद दे रहीं थी , ये देख मैं भी अंदर जाने लगी तभी बर्तनो के बजने की आवाज आई पीछे मुड़कर देखा तो बूढ़ी दादी बर्तन साफ कर रही थी ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 14/10/2019 )