मजदूर दिवस पर एक रचना
मजदूर दिवस पर एक रचना
1-5-24
मजदूर …
अनमोल है वो
जिसे दुनिया
मजदूर कहती है
इसी के बल से
धरातल पर
ऊंचाई रहती है
कहने को
मेरुदंड है वो
धरा के विकास का
आसमानों को छूती
अट्टालिकाएं बनाने वाला
जो
तिनकों की झोपड़ी में रहता है
वो
सृजनकर्ता
मजदूर कहलाता है
हर आज के बाद
जो
कल की चिंता में डूबा रहता है
कल का चूल्हा
जिसकी आँखों में
सदा धधकता रहता है
कम होती
रोटियों की गोलाई
जिसकी मजदूरी को
धिक्कारती है
भूख का तांडव
जिसके चेहरे पे
सदा नज़र आता है
सच
वो सृजनकर्ता
मजदूर कहलाता है
उसकी समझ में नहीं आता
आखिर ये मजदूर दिवस
क्यों आता है ?
जीवन
जिस ढर्रे पर होता है
उसी पर चलता रहता है
धन और तन में
जंग होती रहती है
कलनी,कुल्हाड़ी,फावड़ा ,परात
यही तो उसकी जंग के साथी हैं
इन्हीं को वो अपनी व्यथा सुनाता है
इन्हीं के संग उठता है
इन्हीं के संग सो जाता है
कुछ भी तो नहीं बदलता
मजदूर दिवस पर भी
एक मजदूर
सिर्फ़
मजदूर ही कहलाता है
सुशील सरना/1-5-24