मग वैद्यकी
मग वैद्यकी
: दिलीप कुमार पाठक
बाबा बाबा थे। अब स्वर्गीय केशव पाठक जी वैद्य। सामने काँसे का लोटा बाबा का याद दिला रहा है। उसपर लिखा हुआ है श्री केशव पाठक जी वैद्य को सप्रेम ! तब मैं गोह में रहता था। बाबूजी गोह थाने के एडडी गांव में पढ़ाते थे। जो हमीदनगर और तेयाप के बीच में पड़ता है। सुविधा के ख्याल से हम गोह में रहते थे। गोह बस्ती में। एक पंडित जी थे उन्हीं के मकान में। गांव जो हमारा जहानाबाद जिले में पड़ता है कखौरा। हम होली-दशहरे में जाया करते थे। एकबार बाबा को साथ लेते आये। सदा के लिए अपने साथ रहने के लिए। बाबू जी को विद्यालय के लिए एक ब्लैकबोर्ड मिला था बड़ा सा लकड़ी का, काला पेंट किया हुआ। बगल में एक लाला जी रहते थे। फ़ौज से रिटायर थे। बोर्ड लिखने में माहिर थे। ब्लैकबोर्ड को सुन्दर सा साइनबोर्ड बना दिए। आयुर्वेदिक औषधालय / श्री केशव पाठक जी वैद्य। रोगी लोग आने लगे थे। बाबा उपचार में लग गए थे। एकदिन एक हमीदनगर के एक ठठेरा आये। “वैद्य जी हैं। ” हाँ भाई हैं। कहिये क्या कष्ट है।” “बाबा जी देख ही रहे हैं। ”
वे स्वेत कुष्ठ से पीड़ित थे करीब पांच साल से। उपचार की चाहत थी, थोड़ी लाज-शरम भी थी।
“घबराइये नहीं ठीक हो जाइएगा चार-पांच महीने में। ”
“तब तो बाबा हम आपको ……………।”
उनका दवाई चलने लगा था। इसी बीच बाबा का मन गोह से भर गया था और बाबा कखौरा बापस आ गए थे।
चार महीने बाद ठठेरा महोदय दरवाजा ठकठकाए ,” वैद्य जी वैद्य जी ”
“वो तो अब ……।”
“घर गए हैं, है न। मेरा तो सबकुछ बदल गया है। सब पहले जैसा वापस आ गया है। कबतक आएंगे? उनके लिए कुछ बनाकर लाये हैं अपने हाथ से।”
क्या है भाई ? हम अचंभित थे। बाबूजी पढ़ाने गए थे। घर में माँ और हम भाई बहन थे।
अपनी गठरी नीचे रख, उसे खोल, उसमें से चमचमाता हुआ एक काँसे का लोटा
उन्होंने निकाला। जिसपर मेरे बाबा का नाम अंकित था।